A lyrical collection from an acclaimed master of Hindi poetry The poems in this selection capture the range of styles and concerns of one of Hindi’s most well-known writers. Chosen from a body of work spanning several decades, these are beautifully translated by Rahul Soni and introduced by poet Arundhathi Subramaniam.
विष्णु खरे की कविताएँ हमारे लिए एक अलग कक्षा बनाती हैं, जहाँ चलते हुए हम एक तरफ कविता पढ़ने की और दूसरी तरफ दुनिया को देखने की अपनी पद्धति से मुक्त होते जाते हैं। उन्हें पढ़ते हुए हम रोज-रोज की अपनी दृश्य-बहुल यात्राओं में ही अचानक एक ऐसी जगह खड़ा पाते हैं जहाँ हमें देखने का अपना ढंग नाकाफी लगने लगता है, लेकिन साथ ही हमें अपने साथ एक ऐसे कवि के होने पर आश्वस्ति भी होती है, जो हमारी निगाह को उधर भी ले जाता है, जिधर अपनी सुरक्षित आदतों के कारण ही न तो हम अपने जीवन में झाँकते हैं, न पाठ में।वे लम्बी कविताओं के कवि हैं, यह वक्तव्य उनका अति-सरलीकरण है। वे गद्यात्मकता में अपनी लय और विवरणों में अपनी कविता खोज लेते हैं, यह भी उनके काव्य-प्रस्तार का पूरा परिचय नहीं है। वे कविता और जीवन के बीच जो फासला भाषा की अपनी सीमाओं के कारण आ जाता है, जैसे उस फासले से लड़ते हुए कवि हैं। उनकी कविताएँ कविता के रूप में भाषा का सहज उपभोग्य उत्पाद बनने से इनकार कर देती हैं, उन्हें पढ़ने के बाद हम ‘वाह’ कहकर मुक्त नहीं हो पाते, वे पाठक के रूप में हमारी स्वतंत्र उपभोक्ता-सत्ता को अस्थिर कर देती हैं, हमें यह जरूरी लगने लगता है कि कविता के भीतर हों, भोक्ता, सिर्फ उपभोक्ता नहीं।वे अन्तिम तौर पर गढ़ दी गई दुनिया के बारे में अन्तिम तौर पर बना ली गयी धारणाओं-निष्कर्षों और प्रतिक्रियाओं की कविताएँ नहीं हैं, अपनी कलात्मक सिद्धि को दूर तक स्थगित करती हुईं, वे हमें लगातार हमारी अपूर्णताओं का अहसास कराती हुई कविताएँ हैं।